Everything about baglamukhi sadhna
Everything about baglamukhi sadhna
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Human is liable to many complications and fears in his life. The solution of these is possible by way of receiving initiation of Maa Baglamukhi.
Have a very picture of Bagalamukhi before you. Burn off an incense, gentle a candle before the image of Bagalamukhi.
सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: मां बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।
गर्वी खवर्ति सर्व विच्च जडति त्वद् यन्त्राणा यंत्रितः।
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Bagalamukhi is understood by the favored epithet Pitambara-devi or Pitambari, “she who wears yellow outfits”. The iconography and worship rituals continuously make reference to the yellow colour.
Goddess Bagalamukhi is the eighth Mahavidya from 10 Mahavidyas. She may be the goddess of enormous power and it is worshipped to attain victory in excess of enemies, arguments and so on.
रुई को पीला रंग कर के गाय के घी में दीपक प्रज्वालित करें
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पर फिर भी के लेया जो स्पेशल है आप की विशेष मनोकामना के लिए । इस के लेया आप हमारे दस महाविद्या पर वीडियो आने वाले है । आप वो जरूर देखे आप पता चल जाएगा । आप को कोण सी साधना करनी है । अभी के लेया मैं कमला महाविद्या पर जनक्रारी उपलब्द है । आप वो वीडियो देखो बाकी की जानकारी के लेया हमारे चैनल के साथ जुडो
‘ रक्षोहणं वलग-हनं वैष्णवीमिदमहं तं वगलमुत्किरामि । ‘
संतान प्राप्ति हेतु योनी-हवन कुंड पूजन की अत्यधिक मान्यता है। महादेवी के इस प्रयोग से हर तरह के कोख-बंधन खुल जाते हैं।
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जो साधक अपने इष्ट देवता का निष्काम भाव से अर्चन करता है और लगातार उसके मंत्र का जप करता हुआ उसी का चिन्तन करता रहता है, तो उसके जितने भी सांसारिक कार्य हैं उन सबका भार मां स्वयं ही उठाती हैं और अन्ततः मोक्ष भी प्रदान करती हैं। यदि आप उनसे पुत्रवत् प्रेम करते हैं तो वे मां के रूप में वात्सल्यमयी more info होकर आपकी प्रत्येक कामना को उसी प्रकार पूर्ण करती हैं जिस प्रकार एक गाय अपने बछड़े के मोह में कुछ भी करने को तत्पर हो जाती है। अतः सभी साधकों को मेरा निर्देष भी है और उनको परामर्ष भी कि वे साधना चाहे जो भी करें, निष्काम भाव से करें। निष्काम भाव वाले साधक को कभी भी महाभय नहीं सताता। ऐसे साधक के समस्त सांसारिक और पारलौकिक समस्त कार्य स्वयं ही सिद्ध होने लगते हैं उसकी कोई भी किसी भी प्रकार की अभिलाषा अपूर्ण नहीं रहती ।